Thursday, 8 November 2018

धन के देवता कुबेर के जन्म कि कथा

धन के देवता कुबेर के जन्म कि कथा
Article courtesy: GURUTVA JYOTISH Monthly E-Magazine November-2018
लेख सौजन्यगुरुत्व ज्योतिष मासिक ई-पत्रिका (नवम्बर-2018)

पूर्व जन्म में कुबेर गुणनिधि नामक वेदज्ञ ब्राह्मण थे। गुणनिधि को शास्त्रों का पूर्ण न था और गुणनिधि प्रतिदिन देव वंदन, पितृ पूजा, अतिथि सेवा नियमित रुपसे करते थे। गुणनिधि सभी प्राणियों के प्रति दया, सेवा एवं मैत्री का भाव रखते थे। गुणनिधि बड़े धर्मात्मा थे, परंतु कुसंगति में पड़कर धीरे-धीरे मति भ्रम के कारण गुणनिधि के सारें अच्छे गुण अवगुणों में परिवर्तित गयें। गुणनिधि के इस अवगुणों से उनके पिता अज्ञात थे परंतु उनकी माता इस सभी कार्यो से भली प्रकार से परिचित थी परंतु उन्होने पुत्र मोहके कारण यह बात अपने पति को नहीं बताई। जिसके फल स्वरुप गुणनिधि ने अपनी सारी पैतृक संपति का नाश करदिया।
एक दिन किसी प्रकार गुणनिधि के पिता को उनके दुष्कर्मो का पता चला और उन्होंने गुणनिधि कि माता से अपनी संपति व गुणनिधि के बारे में जानकारी चाही। गुणनिधि पिता के क्रोध एवं भय से घर छोड़कर भाग कर वन में चले गए। वन में इधर-उधर भटकने के बाद गुणनिधि ने संध्या समय एक शिव मंदिर देखा। उस दिन शिवरात्री थी इसलिये शिव मंदिर में शिव भक्त शिवरात्रि का पूजन और प्रसाद के साथ शिव पूजा का विधि-विधान कर रहे थे।
घर से भागने एवं वन में भटकने के कारण गुणनिधि पूरे दिन भूख-प्यास से परेशान था, इस कारण प्रसाद आदि खाद्य वस्तुओं को देखने पर गुणनिधि कि भूख और ज्यादा बढ़ गई। गुणनिधि वहीं पास में छुपकर पूजन देखते रहे एवं सोच रहे थे कि इन लोगों को नींद आने पर प्रसाद चुराकर अपनी भूख शांत करलूंगा। रात्रि काल में शिव भक्तों के सो जाने के पश्चयात गुणनिधि ने एक कपड़े कि बती जलाकर फल-पकवानों को लेकर भाग ही रहेथे कि उनका पैर एक सोए हुए पुजारी के पैर से टकरा गया और वह पुजारी चोर-चोर चिल्लाने लगे। चोर-चोर कि आवाज सुनकर अन्य पास में सोयें हुवे सभी सेवक जाग गए एवं गुणनिधि पर बाण छोड़ा, जिससे उसी समय गुणनिधि के प्राण निकल गए।
यमदूत जब गुणनिधि को लेकर जाने लगे तो भगवान शंकर कि आज्ञा से उनके गणों ने वहां पहुंचकर गुणनिधि यमदूतों से छीन कर गुणनिधि को शिवलोक में ले आये। भगवान शंकर ने गुणनिधि के उसदिन भूखे रहने को व्रत-उपवास, रात्रि जागरण, पूजा-दर्शन तथा प्रकाश के निमित जलाए गए वस्त्र कि बती को आरती मानकर उस पर प्रसन्न हो गए और उसे अपना शिवत्व प्रदान किया। पुन: जन्म धारण कर गुणनिधि कुबेर के नाम से प्रसिद्ध हुए।
शास्त्र पुराणों में कुबेर के पिता विश्रवा एवं पितामह प्रजापति पुलस्त्य होने का उल्लेख मिलता हैं। कुबेर कि माता भारद्वाज ऋषि कि कन्या इड़विड़ा हैं, कुबेर कि सौतेली माता का नाम केशिनी हैं। रावण, कुंभकरण और विभीषण कुबेर के सौतेले भाई हैं। कुबेर कि पत्नी का नाम भद्रा हैं। कुबेर के दो पुत्र नाल कुबेर और मणीग्रीव। कैलाश पर स्थित अलकापुरी राज्य में निवास करते हैं।
कुबेर कि सभा में सर्वोच्च रत्न जडि़त सिंहासन पर महाराज कुबेर विराजते हैं। रंभा, उर्वशी, मेनका, मिश्र केशी आदि अप्सराएं किन्नर, यज्ञ और गंधर्वगण तथा ब्रह्मर्षि देवर्षि तथा ऋषिगण उनकी सभा में विराजते हैं।
कुबेर कि सेवा में यक्ष एवं राक्षस हर समय उपस्थित रहते हैं। कुबेर ने नर्मदा के कावेरी तट पर सौ वर्षो तक घोर तपस्या कि जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने कुबेर को यक्षों का अधिश्वर बना दिया
कुबेर ने जिस स्थान पर तपस्या कि उस स्थान का नाम कुबेर तीर्थ पड़ा, जहां कुबेर को अनेक वरदान प्राप्त हुवे। रूद्र के साथ मित्रता, धन का स्वामित्व, दिक्पालत्व एवं नल कुबेर नामक पुत्र आदि वर प्राप्त होते ही धन एवं नव निधियों का स्वामीत्व कुबेर को प्राप्त हुवां। उस स्थान पर आकर मरूद्गणों ने कुबेर का अभिषेक किया, पुष्पक विमान भेट देकर कुबेर को यक्षों का राजा बना दिया। उस स्थान पर राज्यश्री के रूप में साक्षात महालक्ष्मी नित्य वास करती हैं। राजाधिराज धनाध्यक्ष कुबेर अपनी सभा में बैठकर अपने वैभव(धन) एवं निधियों का दान करते हैं।
इसलिए कुबेर कि पूजा-अर्चना से उनकी प्रसन्नता प्राप्त कर मनुष्य वैभव(धन) प्राप्त कर लेता हैं। धन त्रयोदशी एवं दीपावली पर कुबेर विशेष पूजा-अर्चना कि जाती हैं जो शीघ्र फल प्रादान करने वाली मानी जाती हैं।
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GURUTVA JYOTISH E-MAGAZINE NOVEMBER-2018
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Article courtesy: GURUTVA JYOTISH Monthly E-Magazine November-2018
लेख सौजन्यगुरुत्व ज्योतिष मासिक ई-पत्रिका (नवम्बर-2018) 


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